विश्वदीपक “तनहा” का जन्म बिहार के सोनपुर में २२ फरवरी १९८६ को हुआ था। सोनपुर हरिहरक्षेत्र के नाम से विख्यात है, जहाँ हरि और हर एक साथ एक हीं मूर्त्ति में विद्यमान है और जहाँ एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। पूरा क्षेत्र मंदिरों से भरा हुआ है। इसलिए ये बचपन से हीं धार्मिक माहौल में रहे, लेकिन कभी भी पूर्णतया धार्मिक न हो सके। पूजा-पाठ के श्लोकों और दोहों को कविता की तरह हीं मानते रहे। पर इनके परिवार में कविता, कहानियों का किसी का भी शौक न था। आश्चर्य की बात है कि जब ये आठवीं में थे, तब से पता नहीं कैसे इन्हें कविता लिखने की आदत लग गई । फिर तो चूहा, बिल्ली, चप्पल, छाता किसी भी विषय पर लिखने लगे। इन्होंने अपनी कविताओं और अपनी कला को बारहवीं कक्षा तक गोपनीय ही रखा । तत्पश्चात मित्रों के सहयोग और प्रेम के कारण अपने क्षेत्र में ये कवि के रूप में जाने गये । बारहवीं के बाद इनका नामांकन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के संगणक विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग में हो गया । कुछ दिनों तक इनकी लेखनी मौन रही,परंतु अंतरजाल पर कुछ सुधि पाठकगण और कुछ प्रेरणास्रोत मित्रों को पाकर वह फिर चल पड़ी । ये अभी भी क्रियाशील है। इनकी सबसे बड़ी खामी यह रही है कि इन्होंने अभी तक अपनी कविताओं को प्रकाशित होने के लिये कहीं भी प्रेषित नहीं किया।

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