उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जनपद में एक गांव पिपनार में 1958 में जन्म। स्थानीय कस्बे के माध्यमिक विद्यालय में इंटरमीडियेट तक की शिक्षा पूरी करने के बाद देवेद्र बनारस चले गये। उदय प्रताप कालेज, वाराणसी से बी.ए. पूरी करने के बाद हिंदी में एम.ए. करने हेतु देवेद्र ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया।
रात-रात भर जागकर दीवारों पर नारे लिखने और पोस्टर चिपकाने के रोचक और रोमांचक अनुभवों के बीच ही देवेद्र की साहित्यिक, सांस्कृतिक रुचि और सक्रियता बढ़ी।
इसी बीच देवेद्र ने हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह के साथ "नक्सलवाड़ी आंदोलन और समकालीन हिन्दी कविता" विषय पर शोध कार्य शुरू कर दिया। देवेद्र के "सुपरवाइजर" को शोध जैसे उबाऊ और नीरस काम में कोई विशेष दिलचस्पी न थी। प्राय: हर शाम गुरु और शिष्य साथ साथ `अस्सी' जाया करते थे। उन दिनों काशीनाथ सिंह "सदी का सबसे बड़ा आदमी" संग्रह की कहानियां लिख रहे थे। देवेद्र उन कहानियों का `रफ' और `फाइनल' और फिर प्रकाशित रूप देखा करते थे। तभी उन्होंने अपनी पहली कहानी "शहर कोतवाल की कविता" लिखी।
देवेद्र को इंदु शर्मा कथा सम्मान के अलावा 1999 में उ.प्र.सरकार का यशपाल पुरस्कार मिला है।
रात-रात भर जागकर दीवारों पर नारे लिखने और पोस्टर चिपकाने के रोचक और रोमांचक अनुभवों के बीच ही देवेद्र की साहित्यिक, सांस्कृतिक रुचि और सक्रियता बढ़ी।
इसी बीच देवेद्र ने हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार काशीनाथ सिंह के साथ "नक्सलवाड़ी आंदोलन और समकालीन हिन्दी कविता" विषय पर शोध कार्य शुरू कर दिया। देवेद्र के "सुपरवाइजर" को शोध जैसे उबाऊ और नीरस काम में कोई विशेष दिलचस्पी न थी। प्राय: हर शाम गुरु और शिष्य साथ साथ `अस्सी' जाया करते थे। उन दिनों काशीनाथ सिंह "सदी का सबसे बड़ा आदमी" संग्रह की कहानियां लिख रहे थे। देवेद्र उन कहानियों का `रफ' और `फाइनल' और फिर प्रकाशित रूप देखा करते थे। तभी उन्होंने अपनी पहली कहानी "शहर कोतवाल की कविता" लिखी।
देवेद्र को इंदु शर्मा कथा सम्मान के अलावा 1999 में उ.प्र.सरकार का यशपाल पुरस्कार मिला है।
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